Monday, March 2, 2009

Landmarks in Poetry II

The following is a beautiful nazm by Kaifi Azmi
- another gem of Urdu poetry.


बस एक झिझक है यही हाल-ऐ-दिल सुनाने में
की तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने में

(The chagrin in narrating the truth of my love
lies in your allusion in the tale of my heart)

बरस पड़ी थी जो रुख से नकाब उठाने में
वो चाँदनी है अभी तक मेरे गरीब-खाने में

(The light of your beauty which filled my life
still endures in my humble abode)

इसी में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी
जो वक्त बीत गया मुझ को आजमाने में

(The sands of time which flew past
could have changed the destiny of my love alas)

ये कह के टूट पड़ा शाख-ऐ-गुल से आखिरी फूल
अब और देर है कितनी बहार आने में

(The last blossom withered away
yearning for the spring of your love)
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The following poem is a very famous one by Makhanlal Chaturvedi. It probably one of the best and most heart-touching piece of poetry on nationalism which I have come across (without the awful rhetoric we all get used to ...)

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूथा जाऊँ
चाह नहीं प्रेमी माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं सम्राटों के
शव पर हे हरि डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इतराऊँ

मुझे तोड़ लेना बनमाली
उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक

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