I could not include it in the earlier post of Landmarks in Poetry - that's because it isn't one. Nonetheless, the simplicity of this piece touches a cord somewhere and hence I'm sharing it on this blog. Unfortnately, I am not aware of the name of the poet who penned the lines below.
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं
तुम कह देना कोई ख़ास नही .
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा
एक झूठ है आधा सच्चा सा,
जज़्बात को ढके एक परदा बस
एक बहाना है अच्छा सा ।
हवा का एक सुहाना झोंखा है
कभी नाजुक तो कभी तूफानो सा,
सकल देख कर जो नज़रें झुका ले
कभी अपना तो कभी बेगानों सा ।
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र
जो समंदर है पर दिल को प्यास नही,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं
तुम कह देना कोई ख़ास नही ।
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है,
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं
पर कभी-कभी आंखों से आंसू बन के बह जाता है ।
यूँ रहता तो मेरे तस्सवुर में है
पर इन आंखों को उसकी तलाश नही,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं ।
Yeah it is really simple poem. But it says many things about the special person. Great yar. Specially second last para is really amazing.
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