Thursday, July 30, 2009

Some beautiful lines...

I could not include it in the earlier post of Landmarks in Poetry - that's because it isn't one. Nonetheless, the simplicity of this piece touches a cord somewhere and hence I'm sharing it on this blog. Unfortnately, I am not aware of the name of the poet who penned the lines below.

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं
तुम कह देना कोई ख़ास नही .


एक दोस्त है कच्चा पक्का सा
एक झूठ है आधा सच्चा सा,
जज़्बात को ढके एक परदा बस
एक बहाना है अच्छा सा


हवा का एक सुहाना झोंखा है
कभी नाजुक तो कभी तूफानो सा,
सकल देख कर जो नज़रें झुका ले
कभी अपना तो कभी बेगानों सा


जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र
जो समंदर है पर दिल को प्यास नही,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं
तुम कह देना कोई ख़ास नही


एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है,
यूँ तो उसके होने का कुछ गम नहीं
पर कभी-कभी आंखों से आंसू बन के बह जाता है

यूँ रहता तो मेरे तस्सवुर में है
पर इन आंखों को उसकी तलाश नही,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं

1 comment:

  1. Yeah it is really simple poem. But it says many things about the special person. Great yar. Specially second last para is really amazing.

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